ज्वालामुखी, हिमाचल प्रदेश
हिमाचल को हम देव भूमि के नाम से जानते है। यहाँ पर हजारो देवी देवताओं का निवास स्थान है। लकिन आज जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहा हूँ। वो कोई आम मंदिर नहीं है। ये एक ऐसा मंदिर है जहां पर मंदिर में किसी प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती है। बल्की माँ की दिव्यो जोय्ति की पूजा की जाती है जो की बिना घी और तेल के हजारो बर्षो से जग रही है। जो कि एक अद्भुत दृश्य है और कलयुग में भी भगवान के होने का प्रमाण दे रही है कहा जाता है कि इस मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से मनोकामना मांगते है। उनकी हर मुराद पूरी होती है। इस मंदिर को हम जवालामुखी मंदिर के नाम से जानते है। इस मंदिर में एक दिन में 5 बार आरती होती है
यह मंदिर काँगड़ा घाटी में स्थीत है। जो की हिमाचल प्रदेश का जिला है। यह मंदिर सारा साल भक्तो के लिए खुला रहता है।
हिमाचल में कहीं भी जागरण होता है तो भक्त जन उस जागरण की ज्योती ज्वाला माता के मंदिर से ले कर जाते है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार
महाराज दक्ष की पुत्री सती थी जिन्होंने भगवान शिव से शादी के लिए बहुत सालों प्राथना की अंत में शिव उन्हें वरदान देते है और भगवान शिव उसकी इच्छाओं पर ध्यान देते है और उसे अपनी दुल्हन बनाने की सहमती देते है .. लकिन उनके पिता महाराज दक्ष दुखी थे की उनकी बेटी ने एक वैरागी, तपस्वी से शादी की है
कुछ समय बाद महाराज दक्ष एक यज्ञ करते है और भगवान शिव और माता सती को निमत्रण नहीं दिया माता सती को जैसे ही यज्ञ के बारे में पता चला तो उन्होंने भगवान शिव को अपने साथ चलने के लिए कहा किन्तु भगवान शिव ने इनकार कर दिया और माता सती अपने पिता महाराज दक्ष के यज्ञो में अकेली ही चली गयी।
माता सती जब प्रजापति दक्ष के महल पहुंची तो प्रजापति दक्ष ने माता सती और भगवान शिव को अपमान जनक शब्द कहने लगे ये माता सती सहन ना कर सकी और माता सती ने प्रजापति दक्ष के यज्ञो के हवन कुंड में खुद को जला लिया
जब ये बात शिव को पता चली तो शिव का क्रोध तीनो लोको ने देखा
जब शिव उन्हें वहां से उठा कर हिमालयो की तरफ जाने तो भगवान विष्णु ने अपने चक्र से देवी सती की देह पर प्रहार किया जिसे के 51 शक्तिपीठो का निर्माण हुआ जिस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी जो अब ज्वाला के रूप में देखि जा सकती है तब से इस स्थान को ज्वाला जी के नाम से जाना जाने लगा
मंदिर का निर्माण
देवी दुर्गा के एक महान भक्त, कांगड़ा के राजा भूमि चंद कटोच ने पवित्र स्थान का सपना हुआ था और राजा ने लोगों को इस जगह का पता लगाने के लिए निर्धारित किया था। जगह का पता लगाया गया और राजा ने उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया। जो की जवालमुखी मंदिर के नाम से जाना जाता है
अकबर और ध्यानु भक्त की कहानी
मान्यताओं के अनुसार, सम्राट अकबर जब इस जगह पर आए तो उन्हें यहां पर ध्यानू नाम का व्यक्ति मिला। ध्यानू देवी का परम भक्त था। ध्यानू ने अकबर को ज्योतियों की महिमा के बारे में बताया, लेकिन अकबर उसकी बात न मान कर उस पर हंसने लगा। अहंकार में आकर अकबर ने अपने सैनिकों को यहां जल रही नौ ज्योतियों पर पानी डालकर उन्हें बुझाने को कहा। पानी डालने पर भी ज्योतियों पर कोई असर नहीं हुआ। फिर अकबर ने अपने सैनिको को ज्योतियो के ऊपर त्वा रखने को कहा जैसे उन्होंने जोय्तियो के ऊपर त्वा रखा तो ज्योतिया तवे को चीरती हुई बाहर आ गयी ये त्वा आज भी इस मंदिर में देखा जा सकता है

यह देखकर ध्यानू ने अकबर से कहा कि देवी मां तो मृत मनुष्य को भी जीवित कर देती हैं। ऐसा कहते हुए ध्यानू ने अपना सिर काट कर देवी मां को भेंट कर दिया। तभी अचानक वहां मौजूद ज्वालाओं का प्रकाश बढ़ा और ध्यानू का कटा हुआ सिर अपने आप जुड़ गया और वह फिर से जीवित हो गया।
यह देखकर अकबर भी देवी की शक्तियों को पहचान गया और उसने देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया। कहा जाता है कि मां ने अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र स्वीकार नहीं किया अकबर के चढ़ाने पर वह छत्र गिर गया और वह सोने का न रह कर किसी अन्य धातु में बदल गया था। वह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है।
गोरख डिब्बी
ज्वाला देवी शक्तिपीठ में माता की ज्वाला के अलावा एक अन्य चमत्कार देखने को मिलता है। मंदिर के पास ही 'गोरख डिब्बी' है। यहां एक कुण्ड में पानी खौलता हुआ प्रतीत होता है जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है। गोरख डिब्बी में उपस्थित साधु उस कुंड को धुप दिखाते है। और आज भी वहां ज्वाला माता दर्शन देती है और कुंड का पानी ठंडा रहता है
पौराणिक मान्यता के अनुसार
एक बार गुरु गोरखनाथ जी तपास्या के लिऐ ज्वाला जी पीठ गए, जब ज्वाला माता ने नाथो के महान गुरु गोरखनाथ जी को अपने स्थान पर तपस्या करते हुऐ देखा तो ज्वाला माता को काफी प्रसन्नता हुई तो उन्होने गुरु गोरखनाथ जी से उनके यहाँ भोजन खाने का अनुरोध किया लेकिन गुरु गोरखनाथ जी ने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया, ज्वाला माता ने काफी जिद की कि वे उन्हें भोजन करवाना चहाती हैँ, अखिर कार गुरु गोरखनाथ जी ने नथता स्विकार कर लिया, लेकिन उन्होने शर्ते रखीं कि भोजन मे वहा सिर्फ खिचड़ी खाना चहाते हैँ जिसे आप खुद अपने हाथो से बनाना और हाँ ये खिचड़ी जल्दी से बनाई जाये हमे यहा से शिध्र जाना हैँ, फिर गुरु गोरखनाथ जे ने कहा कि हम गॉव जा के खिचड़ी के लिऐ चवल और दाल मांग के लाते है। तब तक आप खिचड़ी को बनाने के लिए जल कुंड को गर्म करे जब कुंड का जल गर्म हो जयेगा तब मेँ यहा प्रकट हो जाऊगा, गुरु गोरखनाथ इतना कह के वहा से चल दिए फिर माता माता गुरु जी कहे अनुसार इस जल कुंड के चारो ओर ज्वालाऐँ प्रकट कर दी जिसके फलस्वरुप जल जल्दी गर्म होने लगा लेकिन चमात्कार देखिऐ देखने पर जल उबलता हुऐ प्रतित हो रहा था और हाथ लगाने पर ठंडा लग रहा था , जल गर्म नहीं हुआ उस बजह से गोरख नाथ जी आज तक लोट कर नहीं आये , आज भी ये स्थान ज्वाला जी पीठ मे मौजुद है इस स्थान को "गोरख डिब्बी" के नाम से जाना जाता हैँ,

कैसे पहुंचे
एशिया महाद्वीप के देश भारत में , भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश में ,हिमाचल के जिला काँगड़ा में स्थीत है। ये काँगड़ा से 50 कि0मी की दुरी पर स्थीत है।
हवाई अड्डा: काँगड़ा के गग्गल में हवाई अड्डा ज्वालामुखी से 46 किमी दूर है। वहां से कैब बुक केर आप यहां पहुंच सकते है
रेल: निकटतम ब्रॉडगेज रेलवे लाइन पठानकोट में 123 कि0मी दूर है। निकटतम नेरौगेज रेलवे स्टेशन रानीताल में है जिसे जवाला जी रोड का नाम से जाना जाता है यहां से आप बस या टैक्सी के माध्य से पहुंच सकते है
सड़क मार्ग से: ज्वालामुखी मंदिर सड़क के माद्यम से जुड़ा हुआ है। आपको दिल्ली, शिमला ,धर्मशाला ,चम्बा से आपको यहां के लिए सीधी परिवहन की बस मिल जायँगी
कहा रुके
आपको यहां पर काफी धर्मशालये और होटल मिल जायँगे जो की सबसे कम ,माद्यम और उच्च स्तर में उपलब्ध है आप अपनी सुविधा अनुसार ले सकते है
आने का सबसे अच्छा समय
नवरात्रो के समय मंदिर में काफी भीड़ होती है। ये मंदिर पुरे बर्ष खुला रहता है। आप कभी भी आ सकते है
मंदिर की आरती का समय
गर्मी सर्दी
मंदिर खुलने का समय 5 बजे सुबह 6 बजे सुबह
मंगल आरती 5 AM-6 AM 6 AM-7 AM
भोग आरती 11:30 AM-12: 30 PM 11:30 AM-12: 30 PM
संध्या आरती 7 pm -8 pm 6 pm -7 pm
शयान आरती 9:30 pm -10 pm 8:30 pm -9 pm
मंदिर का समापन समय 10 बजे रात्री 9 बजे रात्री
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